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थारै मिलणै रो मतळब / मदन गोपाल लढ़ा

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थारै पैलै दरसाव
म्हारै हिवड़ै
जलमी एक चावना
कींकर ई तो हुवै
थारै सूं ओळखाणं ।

कैड़ी मुलाकात है आ
ओ म्हारी जोगण।
ज्यूं-ज्यूं
म्हैं थनै जाणुं
खुदोखुद नै बिसरावूं
अंतस री अंधेरी सुरंग में उतरूं।

सांची बता !
थारै मिलण रो मतळब
कठैई म्हारो गमणो तो कोनी ?