भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आव सोधां बै सबद / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 26 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


वेद कैवे
इण सृष्टि में
अजैं थिर है
बै सबद
जका सूं रचीज्या मंतर
जुगां री खेचळ रै पाण।

ओ म्हारां सिरजक !
आव सोधां
बां सबदां नै
पिछाणां बां‘रै तेज नै
उतारां
बां मंतरां री आतमावां नै
आपकी कविता में
अर साधां सगपण बां‘री गूंज सूं।
पछै देखजे
आपणी कविता
किणी मंतर सूं
कम नीं हुवैली।