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उठ गया है समय का परदा / केदारनाथ अग्रवाल
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हंस
तैरते हैं
पानी में
हंस
और पानी
प्रसन्न हैं दोनों
एक समान
एक आप्त आलिंगन में
हिरन की आँखों में
होता है मोर-पंखी नाच
और
नाच में
हिला है
मदन महाराज का
सुघर सिर-मौर
अब
मिल गए हैं
प्राण और पुकार
स्वप्न और
सौंदर्य के रमण में
उठ गया है
समय का परदा
द्वैत से अद्वैत
हो गए हैं
पुरुष और प्रकृति
२४-०३-१९७१