Last modified on 28 नवम्बर 2010, at 22:32

मरा हूँ हज़ार मरण / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:32, 28 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=आराधना / सूर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मरा हूँ हजार मरण
पाई तब चरण-शरण ।

फैला जो तिमिर जाल
कट-कटकर रहा काल,
आँसुओं के अंशुमाल,
पड़े अमित सिताभरण ।

जल-कलकल-नाद बढ़ा
अन्तर्हित हर्ष कढ़ा,
विश्व उसी को उमड़ा,
हुए चारु-करण सरण ।