भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऊर्ध्व चन्द्र, अधर चन्द्र / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:03, 28 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" |संग्रह=आराधना / सूर…)
ऊर्ध्व चन्द्र, अधर चन्द्र,
माझ मान मेघ मन्द्र ।
क्षण-क्षण विद्युत प्रकाश,
गुरु गर्जन मधुर भास,
कुज्झटिका अट्टहास,
अन्तर्दृग विनिस्तन्द्र ।
विश्व अखिल मुकुल-बन्ध
जैसे यतिहीन छन्द,
सुख की गति और मन्द,
भरे एक-एक रन्ध्र ।