भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मृतियों की क़ब्र से / बीरेन्द्र कुमार महतो

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:24, 29 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बीरेन्द्र कुमार महतो }} {{KKCatKavita}} <poem> एक बार स्मृतिय…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक बार स्मृतियों के आस-पास
टहल रहा था,
अचानक क़ब्र की ओर
देख उग आई थी मेरे भीतर
उनकी याद..!

क़ब्र के पास जाकर मैंने
क़ब्र की छाती पर देखा
क़ब्र के ऊपर
उग आए पौधों का हिलना,

पत्तों की सरसराहट
और
क़ब्र के ऊपर
उग आये उड़हुल के फूल की
मुस्कुराहट से,
बीते दिनों की स्मृतियाँ
ताज़ा हो गईं,
और
वह मानो कुछ कह रहा हो...!

मूल नागपुरी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा