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स्मृतियों की क़ब्र से / बीरेन्द्र कुमार महतो
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एक बार स्मृतियों के आस-पास
टहल रहा था,
अचानक क़ब्र की ओर
देख उग आई थी मेरे भीतर
उनकी याद..!
क़ब्र के पास जाकर मैंने
क़ब्र की छाती पर देखा
क़ब्र के ऊपर
उग आए पौधों का हिलना,
पत्तों की सरसराहट
और
क़ब्र के ऊपर
उग आये उड़हुल के फूल की
मुस्कुराहट से,
बीते दिनों की स्मृतियाँ
ताज़ा हो गईं,
और
वह मानो कुछ कह रहा हो...!
मूल नागपुरी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा