जिसके सिर पर धूप खडी है
दुनियाँ उसकी बहुत बडी है।
ऊपर नीलाकाश परिन्दे,
नीचे धरती बहुत पडी है।
यहाँ कहकहों की जमात में,
व्यथा कथा उखडी उखडी है।
जाले यहाँ कलाकृतियाँ हैं,
प्रतिभा यहाँ सिर्फ मकडी है।
यहाँ सत्य के पक्षधरों की,
सच्चाई पर नज़र कडी है।
जिसने सोचा गहराई को,
उसके मस्तक कील गडी है।
और कहाँ तक प्रगति करेगी,
बस्ती यहाँ कहाँ पिछडी है?
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