भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह सूर के अंतर की झाँकी / kumar anil
Kavita Kosh से
Kumar anil (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:14, 29 नवम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>यह सूर के अंतर की झाँकी , यह तुलसी का अरमान भी है । यह भूषण की ललक…)
यह सूर के अंतर की झाँकी , यह तुलसी का अरमान भी है ।
यह भूषण की ललकार भी है, औ संत कबीर का ज्ञान भी है ।
है पन्त- निराला का स्वप्न अगर तो दिनकर का अभिमान भी है ।
हिंदी भाषा ही नहीं केवल, यह भारत की पहचान भी है।