Last modified on 1 दिसम्बर 2010, at 17:12

छोरी: एक / मदन गोपाल लढ़ा

आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:12, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


छोरी
मुळकै है
आरसी में देख‘र
आपरो उणियारो
अर फेर
देख‘र आपरी छिंया
हुय जावै उदास
अर गिणै
आपरी उमर रा बरस
जोख‘र
आपरो काण-कायदो
छोरी
सोधती रेवै
आपरै हुवणै रो सांच।