भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रीत रो पानो : 3 / मदन गोपाल लढ़ा

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:26, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


थारै प्रीत रै पानै में
अजैं लग बाकी है
थारै परस री सौरम।

आखर री आरसी में
म्हैं ओळखूं
थारो उणियारो।

प्रीत रो जूनो पानड़ो
एक इतियास है खुदोखुद में।