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थारी मार / ओम पुरोहित कागद
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दीठ रै
आर-पार
अखूट थार
पण
रग-रग में
संचरै आय’र ।
मन री खेजड़ी
हरमेस रै’सी
हरियल
मार
थारी मार
थार !