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इब कठै बड़ै / रामस्वरूप किसान
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सावण लागग्यौ
झांझळी चालै
धरती रै पेट पडण नै उडीकै
हांडियां में पड्यो बीज
तीन पड़ग्या
चोथौ त्यारी करै
आभै में बादल नीं
देखणियां री आंख्या में डब्बा मंडै
आथण-दिनगै चूंतरियां पर
सोगी-सा किरसा बतळावै-
तीन तो
ओखा-सोखा तोड़ दिया
ओ किंयां टूटसी ?
दो पीसा लेय‘र
सगळां सूं काणां पड़ग्या
पण पार कोनी पड़ी
भौमी हाथां सूं तिसळ
आढ़तियां रै खतगी,
बैकां में जा बड़ी
सगळां बारणां मुंदग्या
मिलगत रा/इब कठै बड़ै
बैरण छांट कोनी पड़ै।