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यह सूर के अंतर की झाँकी / कुमार अनिल

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यह सूर के अंतर की झाँकी,

          यह तुलसी का अरमान भी है ।

यह भूषण की ललकार भी है,

          औ संत कबीर का ज्ञान भी है ।

है पन्त निराला का स्वप्न अगर

           तो दिनकर का अभिमान भी है ।

हिंदी भाषा ही नहीं केवल,

           यह भारत की पहचान भी है ।