भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इच्छा / निर्मल प्रभा बोरदोलोई
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:30, 6 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निर्मल प्रभा बोरदोलोई |संग्रह= }} [[Category:असमिया भाष…)
अपने अंतस में बचाए रक्खो
जंगल का एक अंश
ताकि मिल सके
जुड़ाने भर को तुम्हें थोड़ी-सी छाँह ।
अपने अंतस में बचाए रक्खो
मुट्ठी भर आकाश
ताकि पाखियों के एक जोड़े को
मिल सके उड़ान भरने के लिए एकांत ।