भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संडे जी / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:38, 6 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवराज भारतीय |संग्रह=रंग लुटाती वर्षा आई / शिवर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


सन्डे जी ओ सन्डे जी,
अच्छे-अच्छे सन्डे जी।
सबको छुट्टी दिलवाते है,
सबके प्यारे सन्डे जी।

जल्दी उठने की नौबत से,
आज सवेरे बचते जी।
कभी पकौड़ी कभी चाट
कभी खीर-जलेबी बनते जी।
मौज मनाते खाते-पीते,
हम रसगुल्ले ठंडे जी।
संडे जी ओ संडे जी।

सन्डे जी जब आते हो,
खेल तमाशे लाते हो।
टी.वी., रेडियो के गानों से,
सबका मन बहलाते हो।
आज नही पड़ते है दिनभर,
हमको ‘सर’ के डन्डे जी।
सन्डे जी ओ सन्डे जी,
अच्छे-अच्छे सन्डे जी।