भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धूप / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:38, 6 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवराज भारतीय |संग्रह=रंग लुटाती वर्षा आई / शिवर…)
गरमी में तन झुलसाती है
जाड़े में मन भाती धूप
कभी गुनगुनी कभी सुनहली
धूप बदलती रहती रूप।