भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओ गांव है / रामस्वरूप किसान
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:51, 6 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामस्वरूप किसान |संग्रह=आ बैठ बात करां / रामस्व…)
बेटी टूरै
बाबल री पोळ सूं
उण रै हिवड़ै
ओळूं रै मथीजतै सबदां नै
सुर देवै
देळयां ऊभी
बास-बगड़ री लुगाईंयां
अर आंख्यां पूंछै
गळी बगता लोग
बो देख आटै सूं ल्याड़योड़ै हाथां
बाबल रै बांथ घाल
कुण सुबकै ?
अर बो देख
होकौ भरतौ
बेवणी री आग
आंसुवां सूं ठंडी कुण करै ?
ओ गांव है बावळा !
एक काळजै धड़कतौ गांव।