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आंतरो / शिवराज भारतीय

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हां रफीक
ओ बखत रो आंतरो है
कै मनां रो
कीं कह नीं सकूं
पण हां
अतरो जरूर जाणूं
थूं भी नीं भूल्यो व्हैला
टाबरपणै री उण भेळप नैं
जद
आपां गांवता
होळी री धमाळ
साथै-साथै
भेळा हुय‘र छांटता रंग
एक दुजै माथै।
घर वाळा भी नीं ओळखता
एक निजर में
कुण सो रफीक है
अर कुण रो राजीव
ईद रै मोकै
गळ बांथी घाल्यां
जद
आपां दोन्यू जांवता ईदगाह
तद कुण सोच्यो
कदैई
फकत फोन माथै ही
बोलांला...ईद मुबारक...।
स्यात्
थूं भी नीं पांतर्यो व्हैला
स्काउटिंग रै
उण कैपां नै
जद/परभारत फेरी में
म्हारी बारी होंवती
तो भी थूं ही बोल्या करतो
परभाती अर रामधुन
अर ‘सर्वधर्म प्रार्थना’ में
म्हारा होंठ भी
मतैई खुल ज्यांवता
थारै साथै-साथै
बोलण सारू
‘बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम’
हां रफीक हां
ओ बखत रो आंतरो है
कै मनां रो
कीं कह नी सकूं
पण हां
अतरो जरूर जाणूं
उण टाबरपणै में
आपां कित्ता बड़ा हा।