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घर में रमती कवितावां 33 / रामस्वरूप किसान

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एक दिन
इसै घर में
जावण रौ काम पड़ग्यौ
जकै रै बारणै आगै
दो बंदूकधारी खड्या हा

देखतां ईं
घर रौ आधौ भाग
धुड़‘र म्हारै ऊपर पड़ग्यौ
चोट तो आयी
ऊंडी चोट
पण कसमसांवतौ-कसमसांवतौ
ओखौ-सोखौ निकळग्यौ

संजोग इसौ बैठ्यौ
कै रात भर रैवणौं पड़ग्यौ
इसी-इसी खतरनाक बातां रा
हुंकारा देवणां पड़या
कै म्हनैं
डर लागण लागग्यौ
सोवण रो जतन करयौ
तो घर रौ बाकी हिस्सौ भळै
म्हारै पर धुड़ग्यौ
टसकतां-टसकतां
दिनगै तांईं
भौत ओखौ निकळीज्यौ

जांवती बरियां
पाछौ मुड‘र देख्यौ तो
म्हारा तिराण फाटग्या-
भौत कच्चौ हो
बो घर।