भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ढलते सूर्य की ढलती देह में / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 7 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस उम्र में अब भी
ढलते सूर्य की ढलती देह में
तुमको जिलाए और अपना बनाए
जी रहा हूँ मैं जीने में तुम्हारे
तुमसे लव लगाए
मन में तुम्हारे मन अपना रमाए
सब कुछ भूला
इंद्रियातीत होकर तुम्हारे संसर्ग में फूला

रचनाकाल: १२-०९-१९७१, रात