भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राजा भोगते हैं प्यार के सपने / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:05, 7 दिसम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=कुहकी कोयल खड़े पेड़ …)
आईने में
मुँह देखता है
घर का चाँद,
पीछे पीछे दुनिया
रात के
कंबल में
कैद पड़ी है।
तड़पती है
एक मछली
विकर्षण से आहत
अपने पानी के
समुद्र में।
सजा
भोगते हैं
प्यार के सपने
राख में दबे
निरुद्धार।
रचनाकाल: ११-०६-१९७२, मद्रास