Last modified on 7 दिसम्बर 2010, at 22:09

टूटें सकल बंध / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:09, 7 दिसम्बर 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

टूटें सकल बन्ध
कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध।

रुद्ध जो धार रे
शिखर-निर्झर झरे
मधुर कलरव भरे
शून्य शत-शत रन्ध्र ।

रश्मि ऋजु खींच दे
चित्र शत रंग के,
वर्ण-जीवन फले,
जागे तिमिर अन्ध ।