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''जहाँ जी चाहे सीता जाये' / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
जहाँ जी चाहे सीता जाये'
बोले प्रभु लक्ष्मण से--'अब वह मुझको मुँह न दिखाये
'दुष्ट असुर से ठान लड़ाई
मैंने कुल की आन बचायी
पर जो पर घर में रह आयी
उसे कौन अपनाये!
'अवध उसे जो ले जाऊँगा
अपनी हँसी न करवाऊँगा!
क्या उत्तर मैं दे पाऊँगा
यदि जग दोष लगाये!
चर्चा क्या न रहेगी छायी--
जाने कैसे अवधि बितायी!
जो कंचन-मृग पर ललचायी
लंका उसे न भाये!"
जहाँ जी चाहे सीता जाये'
बोले प्रभु लक्ष्मण से--'अब वह मुझको मुँह न दिखाये