अंगद रावण संवाद प्रसंग (होली फाग) / आर्त
रघुपति पद पंकज करि प्रणाम चले बालि सुवन ललकारे
दशानन द्वारे ।।
मग में मिल्यो अरि सुत उतपाती, बोला चले कहाँ निसिचरघाती
अस कहि चरण प्रहारे ।
गहि सोई चरण कीस महि मारयौ, रावण सुत सुरलोक सिधारयौ ।
चले भागि निसाचर दल तमाम, लंकापति त्राहि पुकारे
दशानन द्वारे ।।1।।
कह लंकेश कहाँ से तू आया, करत उपद्रव न मन सकुचाया
मूढ न चलत संभारे ।
कह अंगद सुनु निसिचर नायक, बालितनय मैं रघुवर पायक ।
पठयउ मोहि करूणासिन्धु राम, आयउ हित काज तुम्हारे
दशानन द्वारे ।।2।।
जग में भयउ तुम बहुत प्रतापी, कस हरि लाये विदेह सुता पापी
मतिभ्रम भयउ तुम्हारे ।
मम सिख मानि राम पहि जाई, जनक सुता प्रभु कह लौटाई ।
हरिचरण गहउ कीहि त्राहिमाम, तव बजेंगे कुशल नगारे
दशानन द्वारे ।।3।।
सुनि सकोप बोला दशकंधर, गुरू जिमि मोहि सिखवत खल बंदर
भूलि प्रभाव हमारे ।
अंगद हृदय सुमिरि भगवाना, पद रोपेउ खल दल खिसियाना ।
अब होंहि विधाता तुम्हहिं बाम, भयउ काल विवश मतवारे
दशानन द्वारे ।।4।।
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