अंगिका पढ़ै लेॅ हे / ब्रह्मदेव कुमार
सजन- चलोॅ-चलोॅ-चलोॅ भागलपुर हे सजनियाँ
अंगिका पढ़ै लेॅ हे।
सजनी- सुनोॅ-सुनोॅ-सुनोॅ मोर बतिया सजनमां
की छेकै अंगिका हो॥
सजन- अंग महाजनपद के जन-जन के भाषा
कोय कहै ‘आंगी’ कोय कहै ‘अंगभाषा’।
अंगजन के छेकै मातृभाषा सजनियाँ
चलोॅ अंगिका पढ़ै लेॅ हे॥
सजनी- पिया तोरोॅ बतिया, बुझौ मेॅ नै आबै
की पढ़भै-लिखबै ई चिन्ता सताबै।
सुनी-सुनी मोंन ओझराबै सजनमां
की छेकै अंगिका हो॥
सजन- खेली-कूदी सीखै, बोलै देखा-देखी
डाॅ ग्रियर्सनें कहलकै ‘छिका-छिकी’।
महापंडित राहुल सांकृव्यायन नेॅ देलकै
जे नाम ‘अंगिका’ हे॥
सजनी- भागलपुर नगरिया तेॅ बसै ननदोसिया
लाजोॅ-शरम सेॅ उठै नै हमरोॅ अखिया।
अब कहाँ रहलै ऊ बतिया सजनमां
हो पढ़ै-लिखै के हो॥
सजन- बोलोॅ-बोलोॅ सजनी, तों छोॅ कैह्नें उदास हे
तहूँ बीए पास, हम्हूँ छिये बीए पास हे।
दुन्हूँ मिली नाम लिखैबै सजनियाँ
अंगिका पढ़ै लेॅ हे॥
सजनी- ऐन्हों सुन्दर देहिया पेॅ एको नै गहनमां
बोलोॅ-बोलोॅ पिया, कैह्या पूरतै सपनमां।
बीतलोॅ जाय छै हमरोॅ जीवनमांसजनमां
हो पढ़ै-लिखै के हो॥
सजन- पढ़ी-लिखी दुन्हूँ मिली, करबै नौकरिया
जिनगी मेॅ ऐतै, खुशी के लहरिया।
तोहरोॅ देभौं नथुनी-झुलनियाँ सजनियाँ
चलोॅ अंगिका पढ़ै लेॅ हे॥
सजनी- पिया तोरोॅ बतिया, जे लागे हिरदईया
अंगिका पढ़ै के-सीखै के जे बतिया।
मनमां मेॅ उठै हिलौरबा सजनमां
अंगिका पढ़ै के हो॥
सजन- चलोॅ-चलोॅ-चलोॅ भागलपुर सजनियाँ
अंगिका पढ़ै लेॅ हे।
सजनी- सुनोॅ-सुनोॅ जैबै भागलपुर जहो सजनमां
अंगिका पढ़ै लेॅ हो॥