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अकेला / नेमिचन्द्र जैन

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उड़ चला अकेला,

तोड़ प्रीति-बन्ध विहग उड़ चला अकेला ।

भूले सब स्नेह-गान,
छोड़ा तरु-तीर मोह,

उड़ा विकल खग अजान श्वेत पंख फैला ।

आशा विश्वास धीर
भर कर मन में अकूल,
बिसरा पथ-प्यार-पीर,

उड़ता जाता अधीर कहीं इस अबेला ।



(1937 में आगरा में रचित)