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अकेले खाय खीनी हिरदय हिलोर / कस्तूरी झा 'कोकिल'
Kavita Kosh से
अकेले खाय खीनीं हिरदय हिलोर,
अनायासे ठभकै छै आँखी सें लोर।
आगू में बैठी केॅ
सब दिन खिलाय छेल्हौ।
गरमीं बरसात में
पंखा डोलाय छेल्हौ।
लागै अनहरियौ में भक-भक ईजोर।
अकेले खाय खीनीं हिरदय हिलोर,
अनायासे ठभकै छै आँखी सें लोर।
जाड़ा में साँझै सें
तापै लेल बोरसी।
गरम-गरम खाय लेॅ
सभ्भै साथ हरसी।
कहाँ में लगैहियौं बोलनीं डोर?
अकेले खाय खीनीं हिरदय हिलोर,
अनायासे ठभकै छै आँखी सें लोर।
कोय देखतै की कहतै?
छट दीयाँ पोछै छीयै।
एक कोॅर खाय केॅ
लागल पानी पीयै छीयै।
आबोॅ नीं जल्दी सें कैहनें कठोर?
अकेले खाय खीनीं हिरदय हिलोर,
अनायासे ठभकै छै आँखी सें लोर।
23/12/15 अपराहन चार बजे