भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अगर तुम युवा हो / शशिप्रकाश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक पोस्टर कविता

ग़रीबों-मज़लूमों के नौजवान सपूतो !
उन्हें कहने दो कि क्राँतियाँ मर गईं
जिनका स्वर्ग है इसी व्यवस्था के भीतर ।

तुम्हें तो इस नरक से बाहर
निकलने के लिए
बंद दरवाज़ों को तोड़ना ही होगा,
आवाज़ उठानी ही होगी
इस निज़ामे-कोहना के खिलाफ़ ।

यदि तुम चाहते हो
आज़ादी, न्याय, सच्चाई, स्वाभिमान
और सुंदरता से भरी ज़िन्दगी
तो तुम्हें उठाना ही होगा
नए इन्क़लाब का परचम फिर से ।

उन्हें करने दो "इतिहास के अंत"
और "विचारधारा के अंत" की अंतहीन बकवास ।
उन्हें पीने दो पेप्सी और कोक और
थिरकने दो माइकल जैक्सन की
उन्मादी धुनों पर ।

तुम गाओ
प्रकृति की लय पर ज़िंदगी के गीत ।
तुम पसीने और खून और
मिट्टी और रौशनी की बातें करो ।
तुम बगावत की धुनें रचो ।
तुम इतिहास के रंगमंच पर
एक नए महाकाव्यात्मक नाटक की
तैयारी करो ।

तुम उठो,
एक प्रबल वेगवाही
प्रचंड झंझावात बन जाओ ।