भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अगले मौसमों के लिए / अरुणा राय
Kavita Kosh से
अगले मौसमों के लिए
सार्वजनिक तौर पर
कम ही मिलते हम
भाषा के एक छोर पर
बहुत कम बोलते हुए
अक्सर,
बगलें झाँकते
भाषा के तंतुओं से
एक दूसरे को टटोलते
दूरी का व्यवहार दिखाते
क्षण भर को छूते नोंक भर
एक-दूसरे को और
पा जाते संपूर्ण
हमारे उसके बीच समय
एक समुद्र-सा होता
असंभव दूरियों के
स्वप्निल क्षणों में जिसे
उड़ते बादलों से
पार कर जाते हम
धीरे-धीरे
अगले मौसमों के लिए
अलविदा कहते हुए