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अचानक / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
अंधेरे कमरे में
जहॉं कुछ भी नहीं सूझता था
यहॉं से वहॉं तक
जलाया मैंने एक छोटा सा दीपक
देखते ही देखते प्रकाश दौड़ा चारों तरफ
खोलता हुआ सबकी ऑंखें।