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अच्छा है या ख़राब / ज्ञानेन्द्र पाठक
Kavita Kosh से
अच्छा है या ख़राब मुझे कुछ पता नहीं
दुनिया तेरा हिसाब मुझे कुछ पता नहीं
मुद्दत से नींद आंखों में आई नहीं मेरे
कहते हैं किसको ख़्वाब मुझे कुछ पता नहीं
उसने किया सवाल तुझे मुझसे प्यार है
मैंने दिया जवाब मुझे कुछ पता नहीं
भीतर से मेरे कोई मुझे दे रहा सदा
है कौन ये, जनाब मुझे कुछ पता नहीं
आँसू अता किये हैं जो महबूब आपने
ज़मज़म हैं या शराब मुझे कुछ पता नहीं
इतना पता है कर्ज़ तेरा मुझपे है सनम
उसका मगर हिसाब मुझे कुछ पता नहीं
मुझको कभी भी दिन के उजाले नहीं मिले
कैसा है आफ़ताब मुझे कुछ पता नहीं
साक़ी न मुझसे पूछ मेरी तिश्नगी की हद
थोड़ी सी दे शराब मुझे कुछ पता नहीं