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अज्ञात-घटक / आनंद खत्री
Kavita Kosh से
जब भी तुमसे मिल के आता हूँ
तो कविता में एक नयापन
यूँ आ जाता है कि,
बहकर तुममें जब
मैं पूरा हो जाता हूँ
खाली-खाली तब
जगकर मुझमें, भीतर,
उसको भरने
एक अज्ञात-घटक
उभर आता है
उसको ही मैं लिख देता हूँ,
जी लेता हूँ,
समझो कविता कह लेता हूँ।
पिछले कुछ सालों में कविता में
बस मैं ही मैं हूँ।
अनजानापन ढूँढ रहा हूँ
आओ ले जाओ मुझसे मैं
मेरी कविता हल्की कर दो
मुझको मैं से खाली कर दो।