अज्ञान पीठ / कर्मानंद आर्य
हमें यह मान लेना चाहिए कि सब चलता है
और ये कि निकारागुआ नहीं है ये
जहाँ कविता के रखवालों को लटका दिया गया सलीब पर
और उनके मर्तबान से सिर को प्रदर्शित किया गया इत्तिहादे चौक पर
कम से कम वे फलिस्तीनी दोस्त
जो कविता के लिए कुर्बान हुए
उनके पास झूठा प्रतिरोध नहीं था
उन्हें कविता के लिए तो नहीं मारा जाना चाहिए था
कविता का खून आजादी का खून होता है
कविता के लिए देश बदर
यह भी घिनौना अपराध है मण्डलोई जी
पर ये भारत है
जहाँ कविता पर मृत्यु नहीं पुरस्कार मिलता है
और कवि पैदा होता है पुरस्कारों के लिए
जाने क्यों यहाँ नक्सली के घर पैदा नहीं होता कवि
न ही कोई यादव कविता की हिमाकत कर पाता है
जाने क्यों चाटुकारिता से कविता की उम्र लम्बी होती रहती है
और कवि मुस्कराता है अकादमिक किताबों में
हत्यारों की फ़ौज अकादमी से सिंडिकेट तक
नशे में डूबी हुई कर लेती है वारा-न्यारा
और अगले दिन घोषणा हो जाती है
अमुक ने अमुक को
अमुक पुरस्कार दिलवा दिया
यहाँ सब चलता है
यह निकारागुआ नहीं है