अड़गड़ मारूं, बड़गड़ मारूं / अमरेन्द्र
अड़गड़ मारूं, बड़गड़ मारूं, बसिया भात खोली-खोली खाँव।
दोॅस दुआरी घुरी-घुरी ऐलौं, सब्भे ठां दुतकारे पैलां
की दूसरा के ? आपनो होने, केकरोॅ पास नै हम्में गेलां
आबेॅ बोलोॅ कन्ने जाँव, बसिया भात खोली-खोली खाँव।
केकरोॅ की विश्वास सुदमियां बदली गेलै पूत-दुल्हैनियां
ऊ भुक्खोॅ सें मरेॅ-तड़पै, जेकरोॅ कोखी के बेटा कमियां
दौड़तेॅ-धुपतेॅ दुखलोॅ पाँव, बसिया भात खोली-खोली खाँव।
दोनों मिली केॅ मौज उड़ाबै, की साथोॅ में गाना गावै
हम्मंे ओसरा पर सुतलोॅ छी, हेकरोॅ केकरौ लाज न आवै
अंगरेजी में की घाँव-घाँव, बसिया भात खोली-खोली खाँव।
हमरोॅ भागे फुटलोॅॅ छेलोॅ, बेटा नांखी पतुहुवो भेलोॅ
लंगड़ोॅॅ बोॅर कनियैनो कानी, दोनो छै दैवे के माँगलोॅ?
एक मूसोॅ तेॅ दूसरोॅ म्यांऊ, बसिया भात खोली-खोली खाँव।