यह जो मैं हूँ देवदार की नव तरुणाई
नील रहस्यों तक जाने की दृढ़ ऊँचाई
चट्टानों में जड़ें गाड़कर मैंने पाई
जहाँ नहीं जी पाया कोई वहीं जिऊँगा,
अडिग रहा हूँ-अडिग रहूँगा-नहीं गिरूँगा;
लौट गई हर आँधी जो आकर टकराई।
रचनाकाल: १५-०९-१९६१
यह जो मैं हूँ देवदार की नव तरुणाई
नील रहस्यों तक जाने की दृढ़ ऊँचाई
चट्टानों में जड़ें गाड़कर मैंने पाई
जहाँ नहीं जी पाया कोई वहीं जिऊँगा,
अडिग रहा हूँ-अडिग रहूँगा-नहीं गिरूँगा;
लौट गई हर आँधी जो आकर टकराई।
रचनाकाल: १५-०९-१९६१