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अतिथि सब गए / अज्ञेय
Kavita Kosh से
अतिथि सब गये : सन्नाटा
ज्वार आया था, गया : अब भाटा।
कुछ काम, दोस्त? हाँ, बैठो, देखो,
किस कुत्ते ने कौन पत्तल चाटा!
नयी दिल्ली, 27 अक्टूबर, 1954