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अतुल्य प्रेम / शिव कुमार झा 'टिल्लू'

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माँ आटा गूंथ रही थी
जल्दी -जल्दी सेकनी थीं चपातियाँ
मंत्री जी को जिला मुख्यालय जाना था
शिक्षक संघ के मंत्री
बहुत स्नेह रखते हैं अपनी अर्धांगिनी से
बराबर चर्चायें होतीं थीं
माँ -चाचियों के बीच
जब सारी पूजनीया माताएँ
बखिया उधेरती थी अपने -अपने
पति के कर्मों का उनके उपहासों का
काश ! मेरे भी वो होते मंत्रीजी के जैसे
अद्भुत और अनन्य प्रेम
समझो अतुल्य प्रेम
करते है अपनी वामा से ..
मैं बाल, भला ! क्या समझता
लेकिन एक दिन देख लिया
अपनी आँखों से
पर उस समय समझा नहीं था
कथाकथित अतुल्य प्रेम की
गति यति और नियति को
उनका छोटा पुत्र प्रखर
था मेरा सहपाठी
रोज साथ -साथ विद्यालय जाना
उसदिन भी साथ ही करने गया था
मुझे देखकर रुकने का संकेतन देकर
चल दिया किचन में ...
कराही में सुवासित हो रही थी
फूलगोभी की मसालेदार सब्जियाँ
रहा नहीं गया बालक से
कराही में ही हाथ डाल दिया उसने
एक टुकड़ा मुँह में गया नहीं की !!!
थप्पड़ों की होने लगी बौछारें
उसके गाल और पीठ पर
क्षण में रक्त के छीटें
भींग गयीं कच्ची सतह
कुछ पड़े गूथें आटे पर भी
शोरगुल में रसोईघर पहुँच गए मंत्री जी
माँ की चूड़ियाँ खंडित होकर
बेधित कर दी थी उनकी कलाइयों को
अर्धांगिनी का रक्त
हो रहा था नष्ट
ऊपर से ताजे व्रण दर्द की आह !
नासूर बनकर चीड़ डाला ह्रदय
दाराभक्त मंत्री जी का
दर्द माँ को और तड़प पिता को
क्या कहना ?
क्षणभर में रक्तभ मन
काँपने लगा प्रियतम का तन
बेहिसाब करने लगे प्रहार
नन्हे पर हाथों से निडर होकर
उनके हाथों में नहीं थी जो चूड़ियाँ !
एक गलती के लिए कितने लोग देंगे सजा
वह भी कोई ख़ास नहीं
हाथ नहीं धोया था फिर क्यों छुआ?
ऐसी गलती ही क्यों करते हो
माँ को क्यों सताते हो ?
ना तुम करते गलतियाँ
ना फूटती चूड़ियाँ
और ना बहते रक्त!
कितने खून वह गए उनके
शर्म है तुम्हे
दुबली हो गयी है .. माँ!
भला इसका परवाह कहाँ?
लगातार मंत्रीजी बोलते गए
इसमे मेरी क्या गलती है ?
माँ के पास बेलन भी था
उन्होंने हाथ से क्यों मारा ?
इस नेनपन से माँ काँप उठी ..
भूल गयी दर्द
अपसोस हो रहा था उन्हें
आखिर बात को दबा देती
बाद में प्रखर को समझा देती
सम्हलकर बोझिल मन से चीख उठी
माँ -बेटे के बीच आपको नहीं आना था
मेरा दिया हुआ थप्पड़
तो क्षणभर में जायेगा यह भूल
मेरे हाथ में भी ना चुभे शूल
माँ -संतति का स्नेह ही ऐसा है !
लेकिन आप क्यों मारे
हमेशा हाथ नहीं उठाना चाहिए ...पिता को
कम होने लगता है डर..
रो रहे थे मंत्री जी दुःख था उन्हें
संतान को मारने का
लेकिन कहीं उससे भी ज्यादा
प्रियतम के विदीर्ण रक्त के छींटे ने
उनके गले में कर दिया शमन
स्नेहिल कफ्फ-पित्त और वायु का
खाँसकर बोले ..लेते आऊंगा बेदाना
माँ का नहीं कम होना चाहिए हीमोग्लोबिन
बेटे के लिए तो रसमाधुरी तीन
भरे डबडब नैनों से पर मुस्कुराते
दोनों का दुलार लिए ..
चला मेरे साथ शिक्षा मंदिर के राह प्रखर
उस समय तो नहीं समझा था
अब सोचता हूँ ऐसे होते हैं
गेह गहन .....और नेह अमर
"अतुल्य प्रेम'..और भाव प्रवर