भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अधमरयो लोकतंतर / राजू सारसर ‘राज’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सफलता रौ मौच्छव
खुषी री वेळा
थम’र नीं थमीं
नाचता-कूदतां ई
सोच
थारै करयै
इंतजाम में
होग्या कितरा’क छेकला
म्हारै हाल-चाल पूछतांई
हिवड़ै रै डूंगा
समन्दा में
हबोळा खांवतौ
दरद अळूझ पड़यौ
बारै।
तोफाण रै वेग
सबर री सगळी सीवां तोड़।
निजौरौ होय’र
बैठयौ कळपै
उण खुणै में
जठै नीं पूगै
झपाझप करती
‘ट्यूब लाइटां’ रो चानणों।
धरम जात रो किड़ी नगरौ
खांयां जावै थारी कायां नैं
मांय रो मांय ई
थारौ न्याव
किचरीजै अन्याव रै
खुरळियै पौड़ा सूं
थारै मांस रा लौथड़ा
खाग्या गोला।
लारै छोटी है फगत
कड़कती हाडक्यां।
अठपौ ’री भूख
काढतो थूं
बणग्यौ टी.बी. मरीज
दम उपड़ग्यौ थारौ
पण फिकर मत ना कर
हाल थूं है
अधमर्यौ
कोई चानणी चाटी वाळों
लूंठो माई रो लाल
थारो रैयो-सै’यौ
कांटौ ई काढ देसी
जे इंया ई
चालतौ रैयौ
जणां बाट न्हाळ
म्हारै
जवानी में
बूढायै लोकतंतर
थारी मौत साथै ई
मनैलौ थारो
‘हीरक जयन्ति मौच्छव’।