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अधूरे ही / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
अधूरे मन से ही सही
मगर उसने
तुझसे मन की बात कही
पुराने दिनों के अपने
अधूरे सपने
तेरे क़दमों में
ला रखे उसने
तो तू भी सींच दे
उसके
तप्त शिर को
अपने आंसुओं से
डाल दे उस पर
अपने आँचल की
छाया
क्योंकि उसके थके – मांदे दिनों में भी
उसे चाहिए
एक मोह माया
मगर याद रखना पहले-जैसा
उद्दाम मोह
पहले -जैसी ममत्व भरी माया
उसके वश की
नहीं है
ज़्यादा जतन नहीं है ज़रूरी
बस उसे
इतना लगता रहे
कि उसके सुख-दुःख को
समझने वाला
यहीं -कहीं है!