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अनकहा, कहा न जाये / उर्मिल सत्यभूषण

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अनकहा, कहा न जाये
बिन कहे रहा न जाये

फांस चुभी प्राणों में ऐसी
दर्द यह सहा न जाये

रेत हो गई नदी देह की
अब तो बहा न जाये

छूट गया जो हाथ राह में
हाथ वो गहा न जायें

काठ राख हुई दहते दहते
राख से दहा न जाये

पी पी रटते जीभ थक गई
पी बिना रहा न जाये

उर्मिल सूखी अश्रुधारा
अविरल बहा न जाये।