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अनहद संगीत / सौरभ
Kavita Kosh से
चाँद की शीतल चाँदनी कुछ कह रही है हम से
यह मौन का नाद कुछ कह रहा है हम से
यह साँझ के पक्षी का गीत कुछ कह रहा है हम से
यह समाधिस्थ वृक्षों का संकेत कुछ कह रहा है हम से
यह मन्दिर के घँटे यह मस्जिदों की अजान
कुछ कह रहा है हम से
यह भूं-भूं करता भँवरा और शर्माती तितली
कुछ कह रहे हैं हम से
यह फूलों सुगंधित संदेश कुछ कह रहा है हम से
यह कल कल करती नदियाँ छल-छल बहते झरने
कुछ कह रहे हैं हम से
यह गरजते बादल और कड़कती बिजली
कुछ कह रही है हम से
हे प्रभु! तुम तरह-तरह से
हम से कुछ कह रहे हो
हर पल निरन्तर अनवरत
हम अपनी धुन में मग्न
तेरे यह संदेश सुनने में
असमर्थ है।