वह
हमेशा जागती रहती है
नदी की तरह
वह
हमेशा खड़ी रहती है
पहाड़ की तरह
वह
हमेशा चलती रहती है
हवा की तरह
वह अपने भीतर
कभी अपनी ॠतुएँ
नहीं देख पाती है
वह
अपनी ही नदी में
कभी नहीं नहा पाती है
वह
अपने ही स्वाद को
कभी नहीं चख पाती है ।