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अन्तरण / रामनरेश पाठक
Kavita Kosh से
अपराधों के प्रस्तर आवर्त्तों से
अंखुई एक उग आई है
आँखों का दूध-गांछ फैला है सारे में
विषमताओं को विलास की लाली
त्याग के प्रदेश को मूर्च्छाएँ
अनउगे सपने भविष्य को
वासना की विरूपता
वैवाहिकता का कैशौर्य
विरुप का प्रेम
समर्पित इयत्ताओं की करुणा
तटस्थ विदेह रमण का नैरुज्य
अलक्ष्य द्वीपों के नाम
मैं तल से ऊपर-ऊपर
प्रार्थनाएं, पद्म, नैवेद्य, आचमन का जल,
आरती के कपूर, संगीत, नृत्य और वाद्य
पूजा या देहार्पण छोड़कर
अपराध-सविता से
ब्रम्हांड ही छूट गया एक