उन बड़ी और काली सी
आँखों की छटा कहाँ है?
उन घुघराले बालों की
वह काली घटा कहाँ है?।।४६।।
नव कनक लता सी उस की
सुगठित सुदेह उत्तम थी,
कैसे भी योगी मन को
वह छलने में सक्षम थी ।।४७।।
शुभ चन्द्र सदृश मस्तक पर
था बाल अरुण सा टीका
जिस के समक्ष जग भर का
सौन्दर्य बना था फीका ।।४८।।
स्मर धनु सी थी टेढ़ी
चल काली भौंह निराली
जिसने मेरे मृदु मन पर
थी इन्द्रजाल सी डाली ।।४९।।
कलिका की पंखुड़ियों सी
थीं कोमल-कोमल पलकें
थीं चूम-चूम भग जातीं
उनको वे कुंचित अलकें ।।५०।।