अन्तिम कुछ भी नहीं होता / प्रेमचन्द गांधी
कोई दिन नहीं अन्तिम
न कोई पल अन्तिम
झूठी और भ्रामक हैं
अन्तिम की सारी अवधारणाएँ
जैसे सृष्टि के अन्त की घोषणाएँ
किसी के अन्त या अन्तिम होने की बात
लोभ और लालच की संस्कृति में
व्यापार की नई कला है
बिक्री और छूट का आख़िरी दिन
बचे हुए माल को बेचने का तरीका
आवेदन की अन्तिम तिथि
गलाकाट प्रतियोगिता का पैंतरा
कमज़ोर को बाहर करने का हथियार अन्तिम
अन्तिम आदमी तमाम सूचियों से बाहर
अन्न के आख़िरी दाने गोदामों में सड़ते
अन्तिम पायदान पर लोग तरसते
पानी की आख़िरी बून्द पर कम्पनियाँ काबिज
हर अन्तिम सत्य को झुठलाती संसद
कौन देता है अन्तिम रूप उन नीतियों को
जो पहले से त्रस्त लोगों को
धकेलती अन्त की ओर
समस्याओं का आख़िरी समाधान
क्यों होता है सिर्फ़ व्हाइट हाउस के पास
दरिद्रता के अन्तिम मुहाने पर खड़े
आदिवासियों के पास
कहाँ से आता है आख़िरी हथियार
क्यों अपनी ही जनता को
गोलियों से भून देने का
बचा रह जाता है आख़िरी उपाय
कहीं नहीं कोई अन्तिम सत्ता
इस अनन्त सृष्टि में
हमने मंगल तक जाकर देख लिया
अन्तिम कुछ भी नहीं होता
आख़िरी साँस के बारे में
सिर्फ़ मृतक जानते थे
हमारे पास तो सिर्फ़ इरादे हैं
इनमें से कोई अन्तिम नहीं ।