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अन्तिम शोक / श्रीनिवासी

तब उसे अनुभव हुआ
कि नदी का सिर्फ
एक ही किनारा था
जहाँ खड़े होकर बीते दिनों के
कहीं दूर तलक देखता
यादों में घुल गई
आत्मीय छवि दिखती
और जिसके बाद ना कोई भविष्य था
न अतीत, न इच्छा
और न अन्तिम शोक।