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अपना -अपना सूरज / महेश रामजियावन

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मेरे देश के मुक्त आकाश में
उगते हैं दो सूरज
एक उगता है गांव में
और दूसरा रोशन करता है शहर !

समय के साथ
गांव का सूरज
पीला होता जा रहा है
शहर का सूरज लाल-पीला जगमगा रहा है

गांव का सूरज
खाँसता कराहता उगता है खेतों में
पीलिया की गोलियां खाते हुए

शहर का सूरज
इमारतों के जंगलों से लुका-छुपी खेलते हुए
गुज़र जाता है ।

अब हम सभी को
अपना-अपना सूरज बनाकर
उगाना होगा अपना- अपना सूरज
अपने-अपने आकाश में
अगर
अपनी छत
और अपने आंगन में
ज़रुरत होगी रोशनी की !