भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपनी ज़िद पर हारा था / अंजनी कुमार सुमन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपनी ज़िद पर हारा था
शायद वह बेचारा था

सबको नेमत बाँट गया
खुद किस्मत का मारा था

कैसे मीठे बोल कहे
सबसे मन तो खारा था

मन की बात कही खुद से
आखिर फिर क्या चारा था

हाँथों में था चाँद नहीं
पर आँखों का तारा था