भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपनी ही / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
अपनी लाज में सिमटती
अपनी खींची
लकीरों में घिरती
अपने ही पानी में
बूँद-बूँद पिघलती बर्फ़
औरत