अपनी ही सरहदों में / दिनेश जुगरान
सड़क पर
लिखे गए
लाल रंग के फैसले को ही
अगर इतिहास
मानना है
और अपनी-अपनी खिड़कियों पर
सीखचे लगवाने के सिवा
कोई विकल्प नहीं बच गया है
तो फिर क्या फ़र्क़ पड़ता है
कि तुम
ज़ोर से चीख़ो
या मै
सन्नाटों की आवाज़ के साथ
गुम हो जाऊँ
बहुत दिनों पहले
तुमने अपनी हथेली से
कांच के जंगलों को तोड़कर
लाल रंगों से
अपने हाथों के निशान
दीवारों पर
चिपका दिए थे
और तुम्हारा घर सबेरा
उन निशानों पर
सूरज की रोशनी के साथ
शुरू होता था
रोशनी के जंगल
अंधेरे रास्तों के साथ
गुम हो गए
सपने कंकरीट की तरह
कब जम गए
और बच गए
वे चन्द फैसले
जो फुसफुसाहट और शोर
आपस में मिल कर करते हैं
इतिहास!
तू अकेला ही दोषी नहीं है
मैंने ही कब कोशिश की
तेरा साथ निभाने की
अपने द्वारा खींची गई रेखाओं से
उलझता, टूटता रहा
अपने ही विश्वासों से डरा हुआ
अपनी ही सरहदों में
सुरक्षित पड़ा रहा